दीनदयाल नगर में पुण्यपर्व श्री विजयादशमी उत्सव में मुख्य वक्ता डॉ पूर्णेंदु सक्सेना, मा. मध्य क्षेत्र संघचालक का उदबोधन प्राप्त हुआ।संघ के शताब्दी वर्ष में प्रवेश के अवसर पर स्वयंसेवकों से पंच परिवर्तन विषय को अपने जीवन में अनुकरण करते हुए समाज को जागृत करने का आग्रह किया-*नागरिक कर्तव्यों की प्रतिबद्धता* सामाजिक जीवन में मुख्य बातें जो सभी को पालन करना चाहिए
-१. मन कर्म वचन से ऐसा कोई भी कार्य जिससे किसी को नुकसान हो न करना।
२. प्रदूषण ना फैलाना।
३. जरूरतमंद व्यक्तियों को सहयोग करना।
४. प्रशासन के नियमों का पालन करना जैसे यातायात नियम, कानून के नियम आदि।
५. अपनी कार्यक्षेत्र की जिम्मेदारी का निष्ठापूर्वक निर्वहन करना, व्यक्तिगत एवम सामाजिक जीवन में भष्ट्राचरण का परित्याग करना आदि।
*”स्व-आधारित जीवन शैली*
१.दैनिक जीवन में स्वदेशी सामग्री यानी स्थानीय वस्तुओं का उपयोग।
२. स्वदेशी उद्यमिता पर कार्य
३. जीवन के हर पक्ष में “स्व” यानि भारतीयता का आग्रह आदि।*समरसता युक्त जीवन*
जाति, क्षेत्र से ऊपर उठकर समाज में समरसता युक्त जीवन का वातावरण बनाना।*
मूल्य आधारित कुटुबं रचना*
पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा।*
पर्यावरण संरक्षण की जीवन शैली*
पर्यावरण की रक्षा हेतु अपनी जीवनशैली में निम्न अनुकरणीय कार्य अपेक्षित-
१. प्रत्येक मांगलिक कार्य में वृक्षारोपण करना।
२. प्लास्टिक का उपयोग बंद कर वैकल्पिक सामग्री को बढ़ावा।३. पर्यावरण अनुकूल वाहन का उपयोग
४. दैनिक जीवन में जल सरंक्षण
५. भोजन के दुरुपयोग को रोकना आदि।पुरानी बस्ती नगर में श्री कैलाश जी, क्षेत्र प्रचार प्रमुख जी वक्ता रहे । अपने उद्बोधन में कहा कि मानवता की दानवता पर, साम्राज्यवादी शक्तियों की सामान्य वर्ग पर, सृष्टि संवत से वर्तमान तक का स्मरण करते हुए। श्री हेडगेवार जी ने संघ की स्थापना के लिए आज के दिन को तय किया ।जो साम्राज्यवादी शक्ति भारतीय जनमानस का शोषण कर रही थी, विदेशी आक्रमणकारियो के 750 वर्षो तक आक्रमण के कारण वह हमारे ऊपर हावी हो रहे थे।जिसके कारण संघ की स्थापना की गई। भारत का इतिहास सत्य का है, भारतीय समाज जो ना किसी से डरता है ना किसी को डराता है , भारत के इतिहास का स्मरण कर विजयादशमी के दिन साम्राज्यवादी शक्तियों को ढहाने के लिए संघ की स्थापना की। स्थापना के दिन का पौराणिक महत्व भी है। वर्तमान में भी उसका उतना ही महत्व है। सात्विक शक्तियों पर आसुरी शक्ति के प्रभाव को नाश करने के लिए संगठन की भावना से प्रेरित होकर, स्वयंसेवकों का संगठन इस प्रकार है जैसे आम आदमियों का संगठन होता है ।भारत सत्य की साधना करता है ।राजा हरिश्चंद्र को सपने में विश्वामित्र जी आये।जिसे हरिश्चंद्र जी ने अपना सर्वस्व दान किए जाने की बात की ।दूसरे दिन उन्हें पूरा राज पाठ दे दिया गया। 1001 स्वर्ण मुद्रा देने के लिए उन्होंने अपने बेटे, पत्नी ,और स्वयं को बेचकर1001 स्वर्ण मुद्रा देकर अपना वचन निभाया। प्राण जाए पर वचन न जाए के सिद्धांत पर हमारा समाज कार्य करता है।जो सत्य बोलने के कारण हुआ भारतीय ऋषियों ने सत्य की साधना की। नवरात्रि के 9 दिन के उपवास के बाद एक बार झूठ बोलने से सत्य का महत्व कम हो जाता है ।सत्य ही विजय दिलाता है सत्य के साथ होने से आसुरी शक्तियों का विनाश किया जा सकता है। भारतीय समाज कहता है स्वयं के समर्थ से उद्यम करते हुए धन का अर्जन करने से समाज का विकास हो सकता है। जैसे राम के शासन में हुआ प्रभु श्री राम में सत्य है विनय है ।विनय भाव के कारण सभी को जीता जा सकता है, हम सब के अंदर परमात्मा का अंश है। जगत के कण कण में परमात्मा का अंश है, भारतीय दर्शन कहता है की धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो । सभी प्राणियों में सद्भावना हो ,जो विश्व के कल्याण की कामना करता हो ,वह सच्चे अर्थों में सत्य सनातन हिंदू है। मैं हिंदू हूं, क्योंकि हिंदू किसी का भी अहित नहीं करता ।जो बात तुमको अपने लिए पसंद हो वही बात दूसरों से करनी चाहिए ।संघ की शाखा में सत्व की साधना कर असत्य को नष्ट करने का भाव पैदा करना सिखाया जाता है। भारतीय संस्कृति रक्तबीज पैदा करने का विरोध करने वाली है। सत्य के मानवीय गुणो के आधार पर विजयादशमी के दिन दशानन का वध होता है। समाज को संगठित करने के लिए हमे द्वेष से रिक्त होना पड़ेगा परलोक का सबसे बडा कारण होता है। हमें अपने ईर्ष्या द्वेष को पहचान कर उसे नष्ट करना पड़ेगा ।लेकिन आज इंसान खुदगर्ज हो गया है ।संसाधनों के मोह मे फंसकर अनीति का सहायक तो नहीं हो गए हैं इसका परीक्षण करना जरूरी है। जो व्यक्ति बिना श्रम के खाता है, उसमें मानवीय शक्ति कम होकर आसुरी शक्ति का विकास होता है संघ की शाखा वही श्रम शक्ति को प्राप्त करने का माध्यम है। भारतीय दर्शन का सिद्धान्त सभी के मंगल का है।जिसका पालन हिन्दू करता है। हिंदू किसी भी लालच में नहीं फंसता। स्व विवेक जागृत कर इंसान संकल्पवान बन सकता है। भारत की भव्यता को प्राप्त करने के लिए हमे अनेक आसुरी शक्तियों का नाश करना जरूरी है। संस्कार बचपन में ही दिया जाता है ।अनपढ़ भी समाज के विकास में योगदान दे सकता है यदि वह संस्कारित हो।