चिकित्सा शिक्षा विभाग की बैठक में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने जनहित में फैसला लेते हुए ओपीडी की व्यवस्था में बदलाव किया है। नई व्यवस्था के तहत राज्य के सभी मेडिकल कालेज अस्पतालों में ओपीडी का समय सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे कर दिया गया है।
इलाज के लिए सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक पंजीयन कराया जा सकेगा। स्वास्थ्य मंत्री ने व्यवस्था को शुक्रवार से ही लागू करने के निर्देश दिए हैं। इधर चिकित्सा प्राध्यापक एसोसिएशन ने विरोध करते हुए फैसले को अव्यवहारिक कहा है।
बता दें राज्य के सभी मेडिकल कालेज में अब तक सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक ओपीडी सेवाएं चल रही है। मेडिकल कालेज अस्पतालों में समय पर ओपीडी संचालन नहीं होने की शिकायतें लगातार सामने आती रही है। इसे देखते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने समीक्षा बैठक में ओपीडी की व्यवस्था सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक करने पर मुहर लगा दिया है। इस फैसले में चिकित्सा शिक्षा विभाग के संचालक समेत मेडिकल कालेजों के डीनों ने सहमति जताई है।
नई व्यवस्था को लेकर चिकित्सा शिक्षा प्राध्यापकों ने कहा कि लगातार आठ घंटे तक ओपीडी करना बेहद मुश्किल है। यह पूरी तरह से अव्यवहारिक फैसला है। इसकी जगह ओपीडी दो पालियों मे किया जा सकता है। इधर स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिला अस्पताल समेत अन्य शासकीय अस्पतालों में दो पालियों में ओपीडी की व्यवस्था की है। लेकिन इस व्यवस्था को चिकित्सक अपना नहीं रहे हैं। रायपुर जिला अस्पताल व अन्य शासकीय अस्पतालों में दूसरी पाली में गिने-चुने चिकित्सकों को छोड़ कोई नहीं आ रहा है।
रिएजेंट किट मांग पूरी नहीं, सिर्फ खानापूर्ति
आंबेडकर अस्पताल में रिएजेंट किट की किल्लत से अब माइक्रोबायोलाजी, पैथोलाजी व बायोकेमिस्ट्री विभाग के लैब बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं। मरीज का इलाज प्रभावित हो रहा है। अन्य मेडिकल कालेजों की भी लगभग स्थिति यही है। बैठक में स्वास्थ्य मंत्री व सचिव ने दवाओं की पर्याप्त मात्रा रखने के निर्देश दिए, इसे पहले भी हुए बैठकों में यही बात दोहराई गई थी। लेकिन दवा खरीदी की फाइलें पास करने वाले अधिकारी व मंत्री खुद भी अब तक कुछ कर नहीं रहे हैं। विभागीय सूत्रों की मानें तो रिएजेंट किट व दवाओं की मांग अधिक आ गई है। सीजीएमएससी के पास इतना पैसा अभी नहीं है कि वह रिएजेंट किट व दवाएं खरीद सके। कारण यही है कि छह महीने से अधिक समय से आ रही समस्या पर अब तक हल नहीं निकला।
आयुष्मान में सरकारी अस्पतालों के क्लेम अटके
इधर आयुष्मान योजना के तहत इलाज में कुछ निजी अस्पतालों को समय पर क्लेम का भुगतान किया जा रहा है। जबकि शासकीय अस्पतालों के भुगतान रोके जा रहे हैं। मामले में कई अधिकारियों ने मौखिक शिकायतें तक की थी। बैठक के दौरान स्वास्थ्य मंत्री ने आयुष्मान के तहत इलाज होने वाले क्लेम को समय पर देने को लेकर आयुष्मान योजना के अधिकारियों को निर्देश दिए। अधिकारियों ने बताया कि नौ मेडिकल कालेजों में एक लाख 95 हजार 70 भर्ती इलाज के मामलों में से एक लाख 18 हजार 832 प्रकरणों में क्लेम जल्द दिए जाएंगे। बैठक के दौरान स्वास्थ्य सचिव प्रसन्नाा आर, चिकित्सा शिक्षा संचालक डाक्टर विष्णु दत्त, सीजीएमएससी के प्रबंध संचालक चंद्रकांत वर्मा मौजूद थे।
इस मुद्दों पर भी दिए गए निर्देश
स्वास्थ्य मंत्री ने सभी मेडिकल कालेजों के छात्रावासों में छात्रों के लिए सुविधाएं बढ़ाने और व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने को कहा। मानव संसाधन की कमियों को पूरा करने के लिए कहा मेडिकल कालेजों में ड्यूटी के समय डाक्टरों की मौजूदगी, सामान्य और सिजेरियन प्रसवों की संख्या, जननी सुरक्षा योजना के क्रियांवयन, डायलिसिस सुविधा, सीजीएमएससी द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्यों, सिकलसेल प्रबंधन केंद्र के कार्यों, एंबुलेंस और मुक्तांजलि शव वाहनों की उपलब्धता अन्य कमियों को पूरा करने के निर्देश दिए हैं।
निजी प्रैक्टिस भी बंद करने की तैयारी
इधर, चिकित्सा शिक्षा संचालक डाक्टर विष्णु दत्त ने कहा कि एम्स की तर्ज पर अब राज्य के सभी मेडिकल कालेजों में चिकित्सा प्राध्यापकों के निजी प्रैक्टिस को बंद कराने की तैयारी चल रही है। संचालक दत्त ने कहा कि निजी प्रैक्टिस की वजह से कई चिकित्सा ड्यूटी समय पर नहीं कर पा रहे हैं। इस तरह की शिकायतें लगातार आती रही है। ओपीडी मुद्दा भी इसी वजह से है। हम कोशिश कर रहे हैं। बेहतर व्यवस्था बनाई जा सके। इसके लिए निजी प्रैक्टिस को बंद करने की तैयारी कर रहे हैं।
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा, मेडिकल कालेजों अस्पतालों में ओपीडी सुबह नौ से शाम पांच बजे तक होगी। नई व्यवस्था का पालन हर हाल में करना होगा। डीएमई व डीन व्यवस्था की जिम्मेदारी है व्यवस्था बेहतर करे।
रायपुर मेडिकल कालेज चिकित्सा प्राध्यापक एसोसिएशन के अध्यक्ष डाक्टर अरविंद नेरल ने कहा, सुबह नौ से पांच बजे तक ओपीडी की व्यवस्था अव्यवहारिक है। इसकी जगह दो पालियों में ओपीडी की व्यवस्था की जाए। चिकित्सा प्राध्यापकों से चर्चा कर शासन के समक्ष अपनी बात रखेंगे।
(साभार: नई दुनिया)